आज के इस ब्लॉग में हम प्राचीन भारत के कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों के बारे में जानेंगे जिनकी प्रतिभा की चमक आज धुंधली हो गई हैं।
प्राचीन भारतीय इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं। जिन्हें जानकर हर भारतीयों को गर्व महसूस होता है। प्राचीन समय में लिखे गए वैज्ञानिक ग्रंथों का उल्लेख आज भी प्राचीन भारतीय इतिहास में मिलता है। ऐसे बहुत से प्राचीन वैज्ञानिक हैं। जो गुमनाम है तथा हम उनकी रचनाओं को संभाल नहीं पाया और ना ही उन पर शोध कर पाए। हमें लगता है कि शायद यही हमारे लिए सबसे बड़ी बदकिस्मती हैं। यह सभी वैज्ञानिक रचनाएं उस समय भारत में खोजी गई थी जिस समय आधी से ज्यादा दुनिया का चिंतन केवल खाना व पानी जुटाने तक ही सीमित था।यह भी नहीं कहा जा सकता है कि कुल वैज्ञानिक खोजों का आधार भारत था लेकिन हजारों साल पहले वैज्ञानिकों द्वारा रखे गए तथ्यों को नकारा भी नहीं जा सकता है
दोस्तों प्राचीन भारतीय इतिहास दर्ज कुछ ऐसे महान वैज्ञानिक हैं जिन्होंने आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र को हजारों साल पहले ही जान लिया था ।
आज हम उन्हीं प्राचीन वैज्ञानिकों के बारे में जानेंगे।
●आर्यभट्ट
आर्यभट्ट एक ऐसे वैज्ञानिक है। जिनकी गणना भारत के महानतम खगोल वैज्ञानिकों में की जाती थी। उन्होंने उस समय ब्रह्मांड के रहस्यों को दुनिया के सामने रखा था। जब दुनिया में कई देश अभी गिनती गिनना ही सीख रहे थे।आर्यभट्ट उस समय खगोल विज्ञान के महानतम पंडित थे।
दुनिया मानती है कि सूर्य व पृथ्वी के सही संबंध के बारे में सबसे पहले बताने वाला इंसान निकोलस कॉपरनिकस था। लेकिन आर्यभट्ट ने यह बात कॉपरनिकस से हजारों साल पहले ही बता दी थी।
आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य का चक्कर लगाती है और बाकी ग्रह भी सूर्य के चक्कर अपनी अपनी अलग-अलग दूरी पर घूम कर लगाते हैं।
यह बात आर्यभट्ट ने तब बताई थी। जब यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने यह माना था कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है और पृथ्वी के साथ बाकी ग्रह भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इसके अलावा आर्यभट्ट को यह ज्ञान था कि चंद्रमा और दूसरे ग्रह खुद की रोशनी से नहीं बल्कि सूर्य की रोशनी से चमकते हैं। खगोल विज्ञान के इस महान वैज्ञानिक ने पृथ्वी के परिधि का सही मान बताया था। इतना ही नहीं उन्होंने तो पृथ्वी के घूमने के हिसाब से समय को अलग-अलग भागों में बांटा।
इन्होंने सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग को समान माना है। इनके हिसाब से 1 कल्प में 14 मन्वंतर व एक मन्वंतर में 72 महायुग और 1 महायुग में चार युग होते हैं। एक युग में पृथ्वी 1अरब 58 करोड़22 लाख 33 हजार500 बार घुमती है।
इससे आर्यभट्ट की बुद्धिमता का पता चलता है। शुन्य की खोज ने तो इन्हें ब्रह्मांड में अमर कर दिया ।जिनके बिना गणित की कल्पना करना नामुमकिन था।
चतुरािधकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्त्राणां ।
अयुतद्वयसस्य विष्कम्भस्यसन्नो वृत्तपरिणाहः |
अर्थात् 100 मैं 4 जोड़कर उसे 8 से गुणा कर उसमें 62000 जोड़े। इस प्रकार आप 20000 व्यास वाले वृत्त की परिधि ज्ञात कर सकते हैं।
(100+4)×8+64000=62832 [परिधि]
आप यदि परिधि को उसके व्यास से भाग करें तो 5 अंकों तक पाई का स्पष्ट मान हमें प्राप्त होगा।
62832/20000=3.1416
●महर्षि कणाद
प्राचीन भारतीय इतिहास में इन्हें परमाणु विज्ञान के जनक कहा जाता है। आधुनिक युग में अणु वैज्ञानिक डाल्टन से पहले ही उन्होंने बताया था कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। इन्होंने लिखा है कि भौतिक जगत की उत्पत्ति परमाणु के सूक्ष्म संगठन से होती हैं आसान भाषा में कहें तो किसी भी फिजिकल मैटर का जन्म छोटे-छोटे परमाणुओं से मिलकर होता है। हालांकि वर्तमान में परमाणु अवधारणा का जनक डाल्टन को माना जाता है लेकिन उससे 900 वर्ष पहले कणाद ने वेदों में लिखे सूत्र के आधार पर परमाणु सिद्धांत की खोज की थी। प्रसिद्ध इतिहासकार और अपनी किताब में लिखते हैं कि एक समय ऐसा था जब अनुसन्धान में आचार्य कणाद और दूसरे भारतीय वैज्ञानिक यूरोपीय वैज्ञानिकों की तुलना में ज्यादा आगे थे। आज से 26०० साल पहले ब्रह्मांड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सबसे पहले शास्त्र के रूप में कणाद ने अपने वैश्विक दर्शन शास्त्र में लिखा है। इसके अलावा महर्षि कणाद ने पहले ही गति के तीनो नियम को बताया था।
1. गति का प्रथम नियम
कणाद- वेग: निमित्तविशेषात् कर्मणो जायते
न्यूटन- कोई वस्तु यदि विश्राम अवस्था मैं है तो विश्राम अवस्था में ही रहेगी और यदि गतिमान अवस्था में है तो गतिमान ही रहेगी जब तक उस पर कोई बाह्यबल न लगाया जाए।।
2. गति का द्वितीय नियम -
कणाद-वेग निमित्तापेक्षात् कर्मणो जायते नियत्दिक् क्रिया प्रबंध हेतु।
न्यूटन- किसी वस्तु के संवेग में होने वाले परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के अनुक्रमानुपाती होती है।
3. गति का तृतीय नियम
कणाद - वेग: संयोगविशेषाविरोधी
न्यूटन- प्रत्येक क्रिया की समान परंतु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।
●बोधायन
यह भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्व शास्त्र के रचयिता थे। हम सभी लोगों ने पाइथागोरस का सूत्र अवश्य ही पड़ा होगा वास्तव में इसकी खोज पाइथागोरस से 250 वर्ष पूर्व बोधायन ने की थी बोधायन सूत्र कुछ इस प्रकार था
दीर्घचतुरश्रस्याक्ष्णया रज्जु: पाश्र्र्वमानी त्रिर्यग् मानी च यत् पृथग् भूते कुरूतस्वदभयम् करोति।।
यानी एक आयत का विकर्ण उतना ही क्षेत्र इकट्ठा बनाता है जितने कि उसकी लंबाई और चौड़ाई बनाती हैं इससे यह पता चलता है कि भारतीय गणितज्ञ को पहले ही इस प्रमेय का ज्ञान था।
●भास्कराचार्य
आधुनिक युग में धरती के गुरुत्व शक्ति की खोज का श्रेय न्यूटन को जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से कई सदियों पहले भास्कर आचार्य ने उजागर कर दिया था। न्यूटन के जन्म से 800 साल पहले ही भास्कराचार्य ने गुरुत्व के नियम को जान लिया था और उन्होंने अपने ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि में इसका उल्लेख भी किया है भास्कर आचार्य लिखते हैं की पृथ्वीआकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है इस प्रकार आकाशीय पिंड पृथ्वी पर गिरते हैं। इन्होंने करण कौतूहल नामक ग्रंथ की रचना की। इसमेंं खगोल से संबंधित रचनाएं हैं इसमें उन्होंनेे बताया है कि चंद्रमा सूर्य को ढक लेता तब सूर्यग्रहण और जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा को ढक लेती है तो चंद्रग्रहण होता है। यह पहला लिखित प्रमाण था। जब भारत केे लोगों को दुनियाा में सबसे पहले गुरुत्वाकर्षण चंद्र ग्रहण सूर्य ग्रहण की सटीक जानकारी थी। यह ग्रंथ आज भी हिंदूूूूूू कैलेंडर बनाने के काम आता है। ये अपने समय के सर्प्द्द््भ्ढ वैज्ञानिक हैं। इनके ग्रंथों का अनुवाद अनेकों विदेशी भाषाओं मे हो चुका है। यह ऐसे वैज्ञानिक थे जिनकी सोच उस समय से सैकड़ो वर्ष आगेे थी।
● महर्षि सुश्रुत
यह शल्य चिकित्सा यानी सर्जरी के जनक माने जाते हैं। 2600 वर्ष पहले इन्होंनेअपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ मोतियाबिंद,पथरी का इलाज,प्रसव, कृत्रिम अंग लगाना और प्लास्टिक सर्जरी जैसे कई तरह के जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए थे। आधुनिक विज्ञान केवल 400 साल पहले से ही सर्जरी कर रहा है। लेकिन सुश्रुत ने 26 सौ साल पहले ही यह कर दिखाया था। इनके पास अपने बनाए उपकरण थे। जिन्हें यह पानी में उबालकर साफ करने के बाद प्रयोग करते थे। इनके द्वारा लिखित सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं। इस ग्रंथ में चाकू, सुईया सहित 125 से भी ज्यादा सर्जरी के आवश्यक उपकरण के नाम मिलते हैं। इस ग्रंथ में 300 प्रकार की सर्जरीओं का उल्लेख मिलता है। इनकी किताबों का कई विदेशी भाषा में अनुवाद हुआ है। जिसका पूरे जगत में भरपूर लाभ उठाया ।।
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-शिवेंद्र कुमार मौर्य
Waaahhhhh❤️
जवाब देंहटाएंThank You..
हटाएंVery informative ♥️♥️
जवाब देंहटाएंThank You..
हटाएंVery good... Great information...
जवाब देंहटाएंThank You.....Keep Supporting
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