परमाणु संरचना : इलेक्ट्रॉन, प्रोटान तथा न्यूट्रॉन की खोज | परमाणु मॉडल

परमाणु संरचना : इलेक्ट्रॉन, प्रोटान तथा न्यूट्रॉन की खोज | परमाणु मॉडल |

परिचय-

परमाणु का सिद्धांत बहुत ही पुराना है हमारे भारत के विद्वान महर्षि कणाद [4-6 BC] तथा यूनानी दार्शनिक डेमोकृतस [460-370 BC] आदि विद्वानों ने वर्षों पहले ही यह इसे प्रस्तावित किया उन्होंने माना कि किसी भी पदार्थ को लगातार विभाजित करने पर अंत में हमें परमाणु प्राप्त होगा। किंतु प्रमाण के अभाव में यह विचार इसी प्रकार चलता रहा।

सन 1808 में जॉन डाल्टन डाल्टन का परमाणु सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने परमाणु कणों  को पदार्थ का मूल कण माना हालाकी आगे हुई नई खोजों में इस सिद्धांत को गलत सिद्ध किया गया।

किताबों की भाँति मैं आपको ज्यादा घुमाऊंगा नहीं चलिए एक मजेदार प्रयोग करते हैं ।चलिए परमाणु सिद्धांत को ही आगे बढ़ाते हैं अब यदि हम एक परमाणु को और विभाजित करेंगे तो हमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन तथा न्यूट्रॉन प्राप्त होगा इन्हीं तीन कणों की खोज के पश्चात डाल्टन के सिद्धांत को गलत सिद्ध किया गया लेकिन रुकिये अभी प्रयोग समाप्त नहीं हुआ है । अब यदि इन कणों को और अधिक विभाजित करेंगे तो हमें क्वार्क प्राप्त होंगे और यदि क्वार्क्स को भी विभाजित करते रहे तो अंत में हमें ऊर्जा के वाइब्रेशंस मिलेंगे। इन वाइब्रेशन को स्ट्रिंग्स कहते हैं तथा इसके थ्योरी स्ट्रिंग थ्योरी कहलाती है।  स्ट्रिंग्स का जिक्र हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में भी किया गया था जिसमें इन्हें रश्मि कहा जाता है। मन तो बहुत कर रहा है आपको क्वाण्टम दुनिया  में ले जाने का  किंतु हमें इतना गहराई में भी नहीं पढ़ाया जाता हमें केवल इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन और न्यूट्रॉन कि दुनिया तक ही रखा जाता है तो फिर से मैं इसी टॉपिक पर आ जाता हूं। 

इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन न्यूट्रॉन की खोज -

• इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन की खोज

इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन की खोज तो एक ही प्रकार किया प्रयोग से हुई जिसे कैथोड किरण प्रयोग कहते हैं।  इस प्रयोग में एक कांच की नलिका होती है जिसमें विद्युत प्रवाहित किया जाता है तथा नलिका के अंदर कुछ गैस भरा जाता है गैस के दाब को नियंत्रित करने के लिए इसमें एक वेक्यूम पंप भी होता है तथा धातु के दो इलेक्ट्रोड लगे हुए होते है।।

CRT experiment
                                           Image credit   commons.wikimedia

 अब यदि नलिका में भरी गैस का दाम अत्यंत कम कर दिया जाए तथा उसमें उच्च विभव के विद्युत को प्रवाहित किया जाए तो कैथोड से एनोड की ओर एक किरण प्रवाहित होगी जिसे कैथोड किरणें कहा जाता है । यह किरण जिन करो से बनी थे उन्हें इलेक्ट्रॉन कहां गया यह किरण कुछ और नहीं अत्यंत तीव्र गति से प्रवाहित इलेक्ट्रॉन थे ।
       यह बात तो हमें किताबों में पढ़ा दी जाति है किंतु इस प्रयोग में हुआ क्या??
जब हमने विद्युत को प्रवाहित किया तो परमाणु में से इलेक्ट्रॉन ऊर्जा पाकर नाभिक के बंधन से मुक्त हो गये तथा ऋणावेशित होने के कारण सभी इलेक्ट्रॉन एनोड की ओर प्रवाहित हुए इस प्रयोग में एक और घटना घटी जिस पर हमने ध्यान नहीं दिया इलेक्ट्रॉन के निकलने के बाद धन आवेशित भाग भी कैथोड की ओर आकर्षित हुआ था। धन आवेशित किरणों को ही बाद में विभिन्न प्रयोगों के बाद एनोड किरणे नाम  दिया गया जो प्रोटान की बनी थीं।इन किरणों के विभिन्न गुणधर्म होते हैं-
 जैसे -
  •  ये किरण सदैव सीधी रेखा में चलती हैं। 
  • विद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्रों की उपस्थिति में ये किरणे अपने मार्ग से विचलित होती हैं ।
  •  कैथोड किरण नलिका मैं उपस्थित गैस की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता जबकि एनोड किरणें गैस की प्रकृति पर निर्भर करती हैं।

• न्यूट्रॉन की  खोज

कई वर्षों बाद सन 1932 में सर जेम्स चैडविक ने बेरिलियम की सीट पर अल्फा कणों की बमबारी करवाई जिसके फलस्वरूप प्रोटॉन से अधिक भारी एक उदासीन कण प्राप्त हुआ जिसे न्यूट्रॉन कहा गया।

परमाणु संरचना
                                                                     परमाणु संरचना 

●नोट-

•  इलेक्ट्रॉन की खोज 1897 में सर जे जे थॉमसन ने की थी तथा इसका नाम करण इसकी खोज के पूर्व ही जी जय स्टोनी ने किया था।

• प्रोटॉन की खोज रदरफोर्ड ने 1919 में की थी।

• न्यूट्रॉन की खोज सन 1932 में जेम्स चैडविक ने की थी।

• इलेक्ट्रॉन के आवेश का मान मिलिकॉन ने ऑयल ड्रॉप एक्सपेरिमेंट में निकाला।

परमाणु मॉडल 

 इलेक्ट्रॉन की खोज के पश्चात सन 1898 में सर जे० जे० थॉमसन ने अपना परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया। इस मॉडल में उन्होंने परमाणु को एक समान आवेशित गोले के रूप में माना जिस पर धनावेश समान रूप से फैला रहता है तथा इस पर तरबूज के बीच की भांति इलेक्ट्रॉन धसे हुए होते हैं इसी कारण इस मॉडल को प्लम पुडिंग मॉडल यह वाटरमेलन मॉडल भी कहते हैं।
        थॉमसन परमाणु मॉडल को सही सिद्ध करने के लिए थॉमसन के शिष्य रदरफोर्ड ने गीजर-मार्सडेन प्रयोग [1909 ]  किया।और परिणाम उल्टा हो गया थॉमसन का परमाणु मॉडल गलत शब्द हुआ और इसके बाद सन 1911 में रदरफोर्ड ने अपना परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने पहली बार नाभिक का जिक्र किया था नाभिक की खोज का श्रेय भी इन्हीं को जाता है किंतु इनका मॉडल भी अधिक समय तक ना चल सका
                     जेम्स क्लार्क मैक्सवेल के अनुसार वृत्तीय कक्षा में घूमते इलेक्ट्रॉन को विद्युत चुंबकीय विकिरण का उत्सर्जन करना चाहिये यदि ऐसा होगा तो इलेक्ट्रॉन की कक्षा छोटी होती जाएगी तथा परमाणु के इलेक्ट्रिक संरचना का भी वर्णन रदरफोर्ड ने नहीं किया इस कारण इन  के परमाणु मॉडल में कुछ संशोधन कर तथा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन के डुएल नेचर कुछ समझ कर बोहर ने अपना परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया
 इस मॉडल में इन्होंने इलेक्ट्रॉन के कक्षा की त्रिज्या  इलेक्ट्रॉन का वेग उसकी ऊर्जा आदि ज्ञात करने का समीकरण प्रस्तुत किया
 इस मॉडल में उन्होंने इलेक्ट्रॉन से जुड़ी लगभग सभी जानकारी दे दी । तभी एंट्री हुई वर्नर हाइजनबर्ग की । 

वर्नर हाइजनबर्ग ने अनिश्चितता का सिद्धांत प्रस्तुत किया जिसके अनुसार इलेक्ट्रॉन  के स्थिति और उसके वेग की एक साथ गणना करना असंभव है
और इसी के साथ उदय हुआ क्वांटम मेकैनिक्स का जिसके विषय में आनेवाले ब्लॉगों में बात करेंगे।।

आशा है आपको यह ब्लॉग पसंद आया होगा इसमें हमने केवल और परमाण्विक करो के खोज के विषय में जाना है कृपया इसे अधिक से अधिक शेयर करें और हमें सब्सक्राइब करें तथा सोशल मीडिया पर फॉलो करें धन्यवाद।।

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