साल था 2014....
हम स्कूल के ओल्ड बिल्डिंग से न्यू बिल्डिंग तथा पेंसिल से पेन पर आ चुके थे। मैं शायद क्लास का सबसे होनहार बच्चा था, क्योंकि हर साल टॉप करता था । इसीलिए शिक्षकों से प्यार भी खूब मिलता था।सब सही लग रहा था जब तक हमें सिलेबस का ज्ञान ना था।एक से एक अखंड चुतियापा झेला है हमने इन तीन सालों में आओ अब विस्तार से जानते हैं।
क्लास फिफ्थ तक हमें जो पढ़ाया गया उसके बारे में कुछ नही कहूंगा किन्तु 6ठवीं कक्षा में आते ही एक से एक अजूबे होने लगे।
बचपन से ही मुझे इंजीनियरिंग, स्पेस और कंप्यूटर में बहुत रुचि थी। किन्तु छठी कक्षा में आते ही कंप्यूटर सब्जेक्ट हटाकर न जाने क्यों एक ऐसा सब्जेक्ट पढ़ाया जा रहा था जिसमें हमने केवल एक ही चीज़ सीखी 'सीखने को ही अधिगम कहते हैं।' यह विषय था व्यक्तित्व विकास जो हमें क्या सिखाना चाहता था ये मैं आजतक नहीं समझ पाया।
अब बात करते हैं एक ऐसे सब्जेक्ट की जिसमें कौन सी क्रिएटिविटी है ये मैं क्या यूपी बोर्ड का कोई स्टूडेंट नहीं समझ पाया। स्वावलंबन के नाम पर तीनों साल केवल लिफाफे और फिरकी बनाना पढ़ाया गया। वास्तव में इन तीन सालों में कउनो हमारी बस फिरकी ले रहा था।
सच बात तो ये है कि दिक्कत इन विषयो में नहीं है बल्कि इस विषयों के विस्तृत सिलेबस में दबकर हम गणित और विज्ञान को भूल जाते थे। ये दिक्कत किसी एक स्कूल की नही है बल्कि पूरे सिस्टम की है। इकोनॉमिक्स के नाम पे सिर से बाउंस करने वाली थ्योरी, इंग्लिश में केवल लिटरेचर, मैथ्स के नाम पर हर एक्सरसाइज का पहला और आखिरी क्वेश्चन यही सब होता है हमारे यूपी बोर्ड में ।
और ये हूँ मैं जो आज 6 साल बाद पछता रहा हूँ...!!
उम्र तो छोटी है लेकिन अपने से छोटो को यही बताऊंगा की अपने लक्ष्य के हिसाब से पढ़ाई करें क्योंकि स्कूलों में टॉप करके केवल वाहवाही मिलती है सफलता की गारंटी नहीं।
वाहवाही में बह जाना ही मेरी सबसे बड़ी भूल थी।
जब तक हमारा एजुकेशन सिस्टम अपग्रेड नहीं होगा तब तक विश्व गुरु बनने का सपना केवल सपना रहेगा.....!!
ब्लॉग पसन्द आया हो तो अधिक से अधिक शेयर करें और अपने से छोटो को भी बताएं धन्यवाद....🙏🙏🙏
Well done.....
जवाब देंहटाएंThank you diii
हटाएंIt's great
जवाब देंहटाएंThank you..❤️❤️
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