कीमत

        कहते हैं किसी भी चीज़ की अहमियत हमें तब समझ आती है जब हम उसे खो देते हैं और शायद हम इस बात पर भरोसा भी नही करते थे लेकिन बीते कुछ दिनों में जहाँ इंसान एक दूसरे से मिले इस क़ाबिल भी न रहा इस बीच उसे हर चीज़ की क़ीमत पता चल गई है

रोटी,नौकर, स्कूल, रिश्ते, सब्जी वाले, पानी वाले, ऑटो वाले यहाँ तक कि बस औऱ ट्रेन की भी क़ीमत पता चल गई है 

जहाँ लोग कभी बडप्पन के नाम पर सब्जी ऑटो और रिक्शे वाले को गालियां देते थे बग़ावत के नाम पर ट्रेन और बस के शीशे तोड़ते थे औऱ उन्हें किसी खिलौने की तरह बस आग लगा देते थे कुछ तो ऐसे थे कि जैसे सरकार ट्रेन को गंदा करने की पूरी ज़िम्मेदारी इन्हीं को दी हो और ये थे "कमला पसन्द" वाले लोग जहां इनको फर्क नही पड़ता था कि ये सीट पर थूक रहे दरवाजे पर थूक रहे या खिड़कियों पर.....

और आज जब उनको इसकी क़ीमत पता चल गई है तो सफ़र से पहले उसके सामने सिर झुका के उसका अभिनंदन कर रहें है.... अहमियत अभी नहीं बढ़ी.... तब भी इतनी ही अहमियत थी लेकिन दिक्कत ये है कि हम भारतीय हैं हम सुधर जाएं ऐसा मुश्किल ही है



ख़ैर देर से ही सही लेकिन लोगो को अहमियत समझ तो आयी

आशा है लोग इसे हमेशा बरकरार रखें..




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